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Premchand novels are still very popular among hindi literature lovers around the world. Many novels of premchand is used in school syllabus in india.
प्रेमचंद की कहानियों में जितनी सरलता से भारत के ग्रामीण , सामाजिक और आर्थिक दशा का विवरण दिखता है उतना किसी अन्य हिंदी उपन्यासकारों की रचनाओं में नहीं दिखता |
प्रेमचंद के उपन्यास भारत की उन सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का दर्पण हैं जो राष्ट्रवादी आंदोलन के दौरान बनी रहीं। उन्होंने भारतीय समाज के वेश्यावृत्ति, सामंती व्यवस्था, गरीबी, जाति व्यवस्था और विधवा पुनर्विवाह जैसे मुद्दों पर कहानियां और उपन्यास लिखे हैं |
मुंशी प्रेमचंद (31 जुलाई 1880–8 अक्तूबर 1936) का जन्म वाराणसी से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद ने तत्कालीन भारत में जैसी परिस्थतियाँ देखीं उसे अपनी कहानियों में उतार दिया , उनकी कहानियां आज भी भारत सहित विश्व में प्रसिद्द हैं और और पढ़ी जाती हैं |
प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों की श्रेष्ठ क्रम वाली सूची बनाना तो मुश्किल है फिर भी आपके लिए Best Novels of Premchand की सूची प्रस्तुत है |
शतरंज के खिलाड़ी
नवाब वाजिद अली शाह के समय पर आधारित ये प्रेमचंद की कालजयी रचना है , ये उस भारत की दशा को दर्शाता है जब समाज का उच्च और निम्न वर्ग भोग विलासिता भरे जीवन में व्यस्त था | ये कहानी है मीर और मिर्जा की , २ दोस्त जिन्हें शतरंज के खेल से बे पनाह प्यार है | शतरंज के खेल के आगे उन्हें किसी बात की चिंता नहीं होती , चाहे बेगम की फटकार हो या अंग्रेजी सेना के आने की सूचना |
एक दिन अचानक मीर साहब ने देखा कि अंग्रेजी फौज गोमती के किनारे-किनारे चली आ रही है। उन्होंने मिरज़ा से हड़बड़ी में यह बात बताई। मिरज़ा ने कहा – तुम अपनी चाल बचाओ। अंग्रेज आ रहे हैं आने दो। मीर ने कहा साथ में तोपखाना भी है। मिरज़ा साहब ने कहा- यह चकमा किसी और को देना। इस प्रकार पुनः दोनों खेल में गुम हो गए।
कुछ समय में नवाब वाजिद अली शाह कैद कर लिए गए। उसी रास्ते अंग्रेजी सेना विजयी-भाव से लौट रही थी। पूरा शहर बेशर्मी के साथ तमाशा देख रहा था। अवध का इतना बड़ा नवाब चुपचाप सर झुकाए चला जा रहा था। मीर और रौशन दोनों इस नवाब के जागीरदार थे।
नवाब की रक्षा में इन्हें अपनी जान की बाजी लगा देनी चाहिए। परंतु दुर्भाग्य कि जान की बाजी तो इन्होंने लगाई ज़रूर पर शतरंज की बाजी पर। थोड़ी ही देर बाद खेल की बाजी में ये दोनों मित्र उलझ पड़े। बात खानदान और रईसी तक आ पहुँची।
गाली-गलौज होने लगी। दोनों कटार और तलवार रखते थे। दोनों ने तलवारें निकालीं और एक दूसरे को दे मारीं। दोनों का अंत हो गया। काश! यह मौत नवाब वाजिदअली के पक्ष में और ब्रिटिश सेना के प्रतिपक्ष में हुई होती! लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
गोदान
गोदान प्रेमचंद का हिंदी उपन्यास है जिसमें उनकी लेखन कला की अभूतपूर्व क्षमता दिखाई देती है । गोदान को प्रेमचंद द्वारा लिखती सारी कहानियों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है , इस कहानी में प्रेमचंद ने भारतीय किसान की मेहनत, गरीबी, संघर्ष , निराशा , दैनिक जीवन आदि का वर्णन बहुत ही सजीव रूप से किया है ।
उसकी गर्दन जिस पैर के नीचे दबी है उसे सहलाता, क्लेश और वेदना को झुठलाता, ‘मरजाद’ की झूठी भावना पर गर्व करता, ऋणग्रस्तता के अभिशाप में पिसता, तिल तिल शूलों भरे पथ पर आगे बढ़ता, भारतीय समाज का मेरुदंड यह किसान कितना शिथिल और जर्जर हो चुका है, यह गोदान में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।
‘गोदान’ होरी की कहानी है, उस होरी की जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसीलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है, किंतु उसे इसका फल नहीं मिलता और अंत में मजबूर होना पड़ता है, फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता।
परिणामतः वह जप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। यह होरी की कहानी नहीं, उस काल के हर भारतीय किसान की आत्मकथा है। और इसके साथ जुड़ी है शहर की प्रासंगिक कहानी। ‘गोदान’ में उन्होंने ग्राम और शहर की दो कथाओं का इतना यथार्थ रूप और संतुलित मिश्रण प्रस्तुत किया है। दोनों की कथाओं का संगठन इतनी कुशलता से हुआ है कि उसमें प्रवाह आद्योपांत बना रहता है। प्रेमचंद की कलम की यही विशेषता है।
निर्मला
इस उपन्यास की कहानी निर्मला नाम की एक १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की की है , इस उपन्यास को भारतीय साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि ये रचना महिला-केन्द्रित है और तत्कालीन समाज में एक महिला की अन्तर्दशा , सामाजिक दुर्दशा , उत्पीड़न को जाहिर करता है |
ये कहानी एक लड़की के अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त व मार्मिक कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से प्रेमचंद ने भारत की मध्यवर्गीय युवतियों सामाजिक जीवन का अद्भुत चित्रण किया है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है।
गबन
भारत की महिलाओं के जीवन पर आधारित ये प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास है , इस उपन्यास में एक पत्नी का उसके पति के जीवन में प्रभाव को दर्शाया गया है | ये कहानी भारतीय समाज का वो रूप दिखाती है जिसे पढ़ कर लगता है की इससे बेहतर यथार्थवादी उपन्यास नहीं हो सकता | प्रेमचंद की लेखन कला का जबरदस्त उदाहरण इस कहानी में दिखता है , कहानी में पत्नी का गहनों के प्रति लगाव है तो दूसरी तरफ उसके कम वेतन पाने वाले पति की दशा को दिखाया गया है |
‘ग़बन’ की नायिका, जालपा, एक चन्द्रहार पाने के लिए लालायित है। उसका पति कम वेतन वाला क्लर्क है यद्यपि वह अपनी पत्नी के सामने बहुत अमीर होने का अभिनय करता है। अपनी पत्नी को संतुष्ट करने के लिए वह अपने दफ्तर से ग़बन करता है और भागकर कलकत्ता चला जाता है जहां एक कुंजड़ा और उसकी पत्नी उसे शरण देते हैं। डकैती के एक जाली मामले में पुलिस उसे फंसाकर मुखबिर की भूमिका में प्रस्तुत करती है।
प्रतिज्ञा
मुंशी प्रेमचंद ने इस उपन्यास में भारत में विधवाओं के सामाजिक जीवन के बारे में लिखा है | यह उपन्यास भारतीय समाज में विषम परिस्थितियों में घुट घुट कर जी रही नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है।
प्रतिज्ञा का नायक विधुर अमृतराय किसी विधवा से शादी करना चाहता है ताकि किसी नवयौवना का जीवन नष्ट न हो। नायिका पूर्णा आश्रयहीन विधवा है। समाज के भूखे भेड़िये उसके संचय को तोड़ना चाहते हैं। उपन्यास में प्रेमचंद ने विधवा समस्या को नए रूप में प्रस्तुत किया है एवं विकल्प भी सुझाया है।
इस उपन्यास में प्रेमचन्द ने तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त विधवा महिलाओं की समस्याओं का चित्रण किया। पूर्णा पात्र के द्वारा समाज में तिरस्कृत और पीड़ित विधवाओं की मजबूरियों का मर्मस्पर्शी चित्रण किया गया। सुमित्रा और प्रेमा के पात्र आदर्श नारी – पात्र हैं तो कमलाप्रसाद अबलाओं पर अत्याचार करनेवाले दुष्टों का प्रतिनिधि है|
कर्मभूमि
प्रेमचन्द की रचना कौशल इस तथ्य में है कि उन्होंने इन समस्याओं का चित्रण सत्यानुभूति से प्रेरित होकर किया है कि उपन्यास पढ़ते समय गांधी जी का राष्ट्रीय सत्याग्रह आन्दोलन पाठक की आँखों के समक्ष सजीव हो जाता हैं।
प्रेमचन्द हर पात्र और घटना की डोर अपने हाथ में रखते हैं इसलिए कहीं शिथिलता नहीं आने देते। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद से ओतप्रोत कर्मभूमि उपन्यास प्रेमचन्द की एक प्रौढ़ रचना है जो हर तरह से प्रभावशाली बन पड़ी है।
ये उपन्यास तत्कालीन भारतीय समाज की बुराइयों, अंग्रेजों का दमन चक्र, अछूत की मंदिर में प्रवेश की समस्या , समाज में व्याप्त धार्मिक पाखण्ड आदि को दर्शाता है | इन सब बातों को जब प्रेमचंद अपनी लेखनी से लिखते हैं तो पढने वाला बरबस घटनाओं को सजीव देखने लगता है |